20250110 200834 - हर 12 साल में ही क्यों लगता है कुम्भ मेला? क्या है कुम्भ मेले का महत्व? क्या है इसका विज्ञान?

हर 12 साल में ही क्यों लगता है कुम्भ मेला? क्या है कुम्भ मेले का महत्व? क्या है इसका विज्ञान?

धार्मिक-कथाएं

हर 12 साल में ही क्यों लगता है कुम्भ मेला? क्या है कुम्भ मेले का महत्व?

20250110 200834 - हर 12 साल में ही क्यों लगता है कुम्भ मेला? क्या है कुम्भ मेले का महत्व? क्या है इसका विज्ञान?

धार्मिक कथाएं।

कुंभ मेला हर 12 साल में हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। यह पौराणिक अमृत कलश की कथा और ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति से जुड़ा है। 12 साल का अंतर गुरु ग्रह के एक राशि चक्र को पूरा करने पर आधारित है, जो खगोलीय घटनाओं के अनुसार धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है।

प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से कुंभ मेला शुरू होने वाला है, जिसकी श्रद्धालु प्रीतिक्षा करते हैं। यह हिंदू धर्म की पवित्र और प्राचीन परंपराओं में से एक है। इसके आयोजन के पीछे पौराणिक, धार्मिक और खगोलीय कारण हैं। आइए जानें, कुंभ मेला हर 12 साल में ही क्यों आयोजित होता है।

कुंभ मेला क्यों लगता है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवता और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। मंथन के दौरान अमृत का एक कलश (कुंभ) निकला, जिसे असुरों से बचाने के लिए देवता भागे। भागने के दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिर गईं। इसलिए, तब से इन स्थानों को पवित्र माना गया और इन पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाने लगा। अमृत की बूंदें हरिद्वार के ब्रह्म कुंड में गिरी थीं। उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे मेला लगता है। नासिक में गोदावरी नदी के तट पर कुंभ मेला आयोजित होता है।

कुम्भ मेला लगने का धार्मिक महत्व और आध्यात्मिक महत्व ?

कुंभ मेला का उद्देश्य श्रद्धालुओं को आत्म शुद्धि का अवसर प्रदान करना है। मान्यता है कि कुंभ मेला के दौरान इन स्थानों पर स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ मेले में गंगा, यमुना, और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान करने से पापों का नाश और आत्मा की शुद्धि होती है। यह मेला साधु-संतों, गुरुओं और श्रद्धालुओं के मिलन का केंद्र है, जहां ज्ञान, भक्ति और सेवा का आदान-प्रदान होता है।

कुंभ मेला हर 12 साल में ही क्यों लगता है?

कुंभ मेला की तिथियां खगोलीय घटनाओं के आधार पर तय होती हैं। बृहस्पति ग्रह और सूर्य की स्थिति का कुंभ मेले से गहरा संबंध है। जब बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मकर राशि में होता है, तब कुंभ मेले का आयोजन होता है। बृहस्पति को अपनी कक्षा में 12 साल का समय लगता है, इसलिए कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। हिंदू ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां होती हैं। 12 राशियां 12 महीनों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो समय चक्र और मानव जीवन से जुड़े होते हैं। कुंभ राशि में बृहस्पति और सूर्य के आने पर यह मेला आयोजित होता है। इसके अलावा 12 साल का चक्र मानव जीवन में एक विशेष ऊर्जा परिवर्तन को दर्शाता है।यह समय आत्मशुद्धि, आस्था और ध्यान के लिए उपयुक्त माना गया है।

क्या महत्व है?

पृथ्वी और चंद्रमा अपने कालचक्रों में घूमते रहते हैं जिसका असर हर इंसान पर भी पड़ता है। लेकिन ये कालचक्र, जीवन के एक च्रक से दूसरे च्रक की यात्रा के दौरान या तो आपके लिए बंधन साबित हो सकते हैं या फिर अपनी सीमाओं के पार जाने के माध्यम बन सकते हैं। ये कालच्रक कई प्रकार के होते हैं और इनमें सबसे लंबा है 144 वर्ष का। 144 वर्ष में एक बार ऐसा होता है जब सौरमंडल में कुछ विशिष्ट घटनाएं होती हैं, जो आध्यात्मिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण होती हैं और इन्हीं मौकों पर महाकुंभ मेले का आयोजन होता है।

कुंभ मेले देश की उन कुछ खास जगहों पर आयोजित किये जाते हैं जहां पर एक संपूर्ण ऊर्जा मंडल तैयार किया गया था। हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर घूम रही है इसलिए यह एक ‘अपकेंद्रिय बल’ यानी केंद्र से बाहर की ओर फैलने वाली ऊर्जा पैदा करती है। पृथ्वी के 0 से 33 डिग्री अक्षांश में यह ऊर्जा हमारे तंत्र पर मुख्य रूप से लम्बवत व उर्ध्व दिशा में काम करती है। खास तौर से 11 डिग्री अक्षांश पर तो ऊर्जाएं बिल्कुल सीधे ऊपर की ओर जातीं हैं। इसलिए हमारे प्राचीन गुरुओं और योगियों ने गुणा-भाग कर पृथ्वी पर ऐसी जगहों को तय किया, जहां इंसान पर किसी खास घटना का जबर्दस्त प्रभाव पड़ता है। इनमें से अनेक जगहों पर नदियों का समागम है और इन स्थानों पर स्नान का विशेष लाभ भी है। अगर किसी खास दिन कोई इंसान वहां रहता है तो उसके लिए दुर्लभ संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं। इसलिए इन मौकों का लाभ उठाने के लिए लोग वहां पहुंचते हैं।

 

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