सफर फर्श से अर्श तक ॥ कभी खुद का तन ढंकने को नहीं थे पैसे, आज हजारों गरीबों के दर्द को बांटने का करते हैं प्रयास अवध के दानवीर राजन पांडेय

सुरेन्द्र सिंह

अयोध्या
कभी खुद का तन ढंकने के लिए गरीबी से संघर्ष करने वाला शख्स आज लाखों रूपए खर्च कर गरीबों को निःशुल्क कपड़ा मुहैया कराता है। अपनी मेहनत व लगन से गरीबी से उबरे इस शख्स ने अपने संघर्षों से सबक लिया है। फैजाबाद के रहने वाले राजन पांडेय आए दिन गरीबों की मदद करने में सक्रिय रहते हैं।
राजन पाण्डेय ने ऑनलाइन समाचार अयोध्या से खास बातचीत में अपने संघर्षों की कहानी बयां की।
फैजाबाद के कुमारगंज थाना क्षेत्र के शिवनाथपुर गांव के रहने वाले राजन पाण्डेय 3 भाइयों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता राम सरदार पाण्डेय बेहद गरीब किसान थे। परिवार का खर्च चलाना उनके लिए बड़ा संघर्ष करने जैसा था। नतीजन बचपन से ही राजन को कई काम करने पड़े जिससे कुछ इनकम हो और परिवार का खर्च और पढ़ाई के लिए स्कूल फीस निकल सके। राजन की पत्नी डॉ तृप्ति पाण्डेय स्थानीय जिला पंचायत सदस्य हैं। उनके तीनो बेटे अमित, अंकित, व अर्पित इस काम में उनका पूरा सहयोग करते हैं।

तन ढंकने के लिए कपड़ा लेने में भी करना पड़ता था संघर्ष

राजन पाण्डेय बताते हैं ” बचपन में गरीबी मैंने बहुत करीब से देखी है। गरीबी इस कदर थी कि पेट भरने के लिए भी काफी कठिन परिश्रम करना पड़ता था। कभी-कभी हम भाइयों की कमीज फट जाती थी तो दूसरी बनवा पाना ऐसे ही लगता था जैसे बहुत बड़ा काम हो। हमारे कपडे में इतनी जगह दर्जनों जगह सिलाई होती थी। उस समय पिता जी से भी हम लोग नहीं कह पाते थे। उनकी हालत हमसे छिपी नही थी।

खेत से घास काट कर बाजार में बेचने से भरता था पेट

राजन ने बताया, “पढ़ाई से लेकर घर का खर्च बेहद तंगी में चल रहा था। 6 साल होते ही गांव के प्राथमिक पाठशाला में दाखिला करा दिया गया। लेकिन घर की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय थी। जिससे पढ़ाई लिखाई ठीक से नहीं हो पाती थी। हमारे पास किताबें भी नही होती थी। किताबें व जरूरत की दूसरी चीजें खरीदने के लिए मैं स्कूल से छूटने के बाद मैं खेतों से घास काट कर पास के बाजार में बेचने जाया करता था। इससे 10 या 20 पैसे मिलते थे। इस पैसे से खाने के लिए कुछ चीजें आ जाती थी। इन सब में इतना टाइम निकल जाता था कि ठीक से पढ़ाई भी नहीं हो पाती थी।”

प्रोफ़ेसर ने दिखाया रास्ता और बदल गई जिंदगी

”धीरे धीरे जिन्दगी के 16 साल बीत गए। इसी तरह संघर्ष जारी रहा। उस दौरान मेरी पहचान आचार्य नरेन्द्रदेव कृषि विश्वविद्यालय कुमारगंज के प्रोफ़ेसर डॉ। जे। एन। तिवारी से हुई। वह मेरी मेहनत से प्रभावित रहते थे। यूनिवर्सिटी में एक निर्माण के दौरान कुछ पेड़ काटे जाने थे। डॉ। साहब के प्रयास से मुझे उन पेड़ों को कटवाने का ठेका मिला। नीलामी के लिए मुझे 5 हजार रु। दोस्तों-रिश्तेदारों से कर्ज लेकर यूनवर्सिटी में जमा करना पड़ा। पेड़ काट कर बेचने पर मुझे लगभग 30 हजार रू मिले। उधार का पैसा देने के बाद, बाकी बचे पैसों से नया काम ढूढ़ने में लग गया।”

जब यूनिवर्सिटी के निदेशक ने डांट कर भगाया

राजन बताते हैं कि “यह बात साल 1998 की है। 03 मार्च 1998 को तत्कालीन राज्यपाल डॉ रोमेश भंडारी की यूनिवर्सिटी विजिट थी । उसके लिए यूनिवर्सिटी में सड़क पर हुए गढढों में मिट्टी डालना था। मैं इस काम के लिए वहां के निदेशक निर्माण डॉ आर.एन. दीक्षित से मिला लेकिन उन्होंने डांट कर भगा दिया हालांकि काफी रिक्वेस्ट के बाद ये काम मुझे मिल गया।”

4 दिन का काम 24 घंटे में ही किया पूरा

राजन ने बताया ” उस समय मेरे सामने शर्त रखी गई कि 4 दिन बाद राज्यपाल का दौरा है, उससे पहले काम पूरा होना चाहिए। मैंने वह काम 24 घंटे में ही पूरा कर लिया। इसमें मुझे लगभग 1 लाख का फायदा हुआ। इसके बाद मेरी इमेज अच्छी बन गई और यहीं से कॉन्ट्रैक्टर लाइफ की शुरुआत हुई।’

11 गोलियां लगने के बाद भी नहीं आई मौत

राजन बताते हैं ” धीरे-धीरे मैं ठेकेदारी की लाइन में उतर गया। इससे मुझे मिलने वाले पैसे में मै अक्सर सामाजिक काम करता रहता था। मेरी बढ़ती लोकप्रियता से कुछ नेताओं को जलन होने लगी। मुझे राजनीति में शामिल करने का प्रयास हुआ लेकिन मैं नहीं गया। मुझ पर कई बार जानलेवा हमले भी हुए। अलग-अलग हमलों में मुझे 11 गोलियां लगी हैं। लेकिन भगवान की कृपा से मैं बच गया।”

अब गरीबों व असहायों की करते रहते हैं मदद

राजन पाण्डेय बताते हैं “अब मै पूरे जिले में गरीबों की मदद करने को लेकर हमेशा सक्रिय रहता हूँ। 2019 में ही मैंने 15 हजार लोगों को कम्बल वितरित किया है। मैं इन कार्यक्रमों को खुद के खर्च से करता हूँ। 2018 में मैंने 10 हजार गरीब महिलाओं को साड़ी वितरित की है। इसके आलावा जिले में कहीं भी कोई आपदा आती है तो मैं लोगों की मदद के लिए सबसे आगे खड़ा रहता हूँ।

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