मोहिनी एकादशी व्रत कथा।

वर्ष के सबसे पवित्र महीनों में वैशाख माह की भी गिनती की जाती है। पुराणों में इसे कार्तिक माह की तरह ही पुण्य फलदायी माना गया है। इस माह में आने वाली एकादशी भी बहुत महत्व रखती है। वैशाख शुक्ल एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति मोह-माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। उसके सारे पाप कट जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है। यह एकादशी भगवान श्रीकृष्ण को परम प्रिय है। जो व्यक्ति मोहिनी एकादशी करता है इस संसार में उसका आकर्षण प्रभाव बढ़ता है। वह हर किसी को अपने मोह पाश में बाँध सकता है और मृत्यु के बाद वह मोहमाया के बंधनों से मुक्त होकर श्रीहरि के चरणों में पहुँच जाता है।
समुद्र मंथन से मिले अमृत को लेकर देवताओं और दानवों में जोरदार खींचतान मची हुई थी। ताकत के बल पर देवता असुरों को हरा नहीं सकते थे इसलिए चालाकी से भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपने मोहपाश में बाँध लिया और सारे अमृत का पान देवताओं को करवा दिया। इससे देवताओं ने अमरत्व प्राप्त किया। वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन यह सारा घटनाक्रम हुआ, इस कारण इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है।
व्रत करने की पूजा विधि
एकादशी व्रत के लिए व्रती को दशमी तिथि से ही नियमों का पालन करना चाहिए। दशमी तिथि को एक समय ही सात्विक भोजन ग्रहण करे। ब्रह्मचर्य का पूर्णत: पालन करे। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद लाल वस्त्र से सजाकर कलश स्थापना कर भगवान विष्णु की पूजा करें। दिन में मोहिनी एकादशी व्रत कथा सुनें या पढ़ें। रात्रि के समय श्री हरि का स्मरण करते हुए, भजन कीर्तन करते हुए जागरण करे। द्वादशी के दिन एकादशी व्रत का पारण किया जाता है। सर्व प्रथम भगवान की पूजा कर किसी योग्य ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद को भोजनादि करवाकर दान दक्षिणा भेंट दें। इसके बाद स्वयं भोजन कर व्रत खोले।
व्रत के मिलने वाले पुण्यफल।
मोहिनी एकादशी का व्रत करने से पापकर्मों से छुटकारा मिलता है।
व्यक्ति मोह माया के बंधनों से मुक्त होकर सत्कर्मों की राह पर चलता है।
मृत्यु के पश्चात व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जीवित रहते हुए इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के आकर्षण प्रभाव में वृद्धि होती है।
सुख-संपदा में वृद्धि होती है। पारिवारिक जीवन सुखी होता है।