आंखों से आंसू नहीं चिंगारियां निकल रही थी। नारो की गूंज हर व्यक्ति के हृदय में दस्तक दे रही थी। सनबीम स्कूल में पढ़ने वाली मृतक बेटी के समर्थन में सड़क पर जनसैलाब उमड़ा। नारे लगाती भीड़ का समर्थन दोनो पटरियों पर मौजूद दुकानदार कर रहे थे। ऐसा शायद की कम दिखाई देगा कि एक घटना के विरोध में मार्च निकल रहा हो तथा उसको रास्ता लोग स्वयं देने लगे। मार्च को मार्ग देने के लिए आने जाने वाले अपना वाहन किनारे पार्क करके रास्ता दे रहे थे। बिना पुलिस की मौजूदगी के मार्च के निकालने से जाम की तस्वीर भी सामने नहीं आ रही थी। ऐसा जनसमर्थन मार्च को मिल रहा था। वहीं इस विरोध मार्च में सबसे बड़ी संख्या में छात्र व छात्राएं मौजूद थी।
हाथ तख्तियां थी जो बेटी के लिए न्याय की मांग कर रही थी। नारे परिवेश में गूंज रहे थे। सबसे बड़ी बात थी कि इस मार्च में केवल आम जनता थी। न कोई संगठन और न कोई राजनैतिक दल। मार्च में किसी के विरोध की भी बात नहीं हो रही थी। बस केवल बेटी को न्याय व दोषियां को फांसी देने की मांग मार्च में हो रही थी। मार्च के समाप्त होने के बाद भी विभिन्न टुकड़ों में लोग बच्ची के आवास की ओर जाते दिखाई दिये।
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