जनपद में धार्मिक श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ देवउठनी एकादशी का त्योहार मनाया गया। देवउठनी एकादशी के दिन से मांगलिक कार्य और अन्य शुभ कार्य शुरु हो जाते हैं। वहीं हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो गई है।
माना जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु के शयन से जागने का दिन होता है। जिसके बाद रीति-रिवाज के साथ पूजा की जाती है। गन्ने की कटाई की शुरुआत के साथ पूजा भी होती है। शाम को बच्चे आग जला कर हर्षोल्लास के साथ खेल खेलते हैं, और ठंड का मौसम शुरू होने का एहसास कराते हैं तथा पारंपरिक सनातन परंपरा निभाते हैं। महिलाओं को श्रद्धालुओं द्वारा पूरी श्रद्धा के साथ देव उठानी एकादशी का व्रत रखकर पूजा अर्चना की गई । और शनिवार भोर में सरपत के सींक से बने सूप की गन्ने के टुकड़े से पिटाई करके दरिद्रता दूर करने की परंपरा निभाई गई। दीपावली उत्सव के बाद ग्यारस का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। तुलसी विवाह होने के बाद शुभ कार्य होना प्रारंभ हो जाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवप्रबोधिनी एकादशी हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। मान्यता है कि चार महीने विश्राम करने के बाद भगवान विष्णु इसी दिन नींद से जागते हैं। और सृष्टि का संचालन अपने हाथों में लेते हैं। इस दिन कई परंपराओं का पालन किया जाता है। तुलसी विवाह भी इनमें से एक है। ज्योतिषी सुशील कुमार सिंह बताते हैं कि एकादशी पर्व का हिंदू और सनातन धर्म में विशेष महत्त्व है।
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